"विद्या मित्रं प्रवासेषु ,भार्या मित्रं गृहेषु च |
व्याधितस्यौषधं मित्रं , धर्मो मित्रं मृतस्य च ||"
अर्थात् :
ज्ञान यात्रा में ,पत्नी घर में, औषध रोगी का तथा धर्म मृतक का ( सबसे बड़ा ) मित्र होता है |
व्याधितस्यौषधं मित्रं , धर्मो मित्रं मृतस्य च ||"
अर्थात् :
ज्ञान यात्रा में ,पत्नी घर में, औषध रोगी का तथा धर्म मृतक का ( सबसे बड़ा ) मित्र होता है |
पुस्तकस्था तु या विद्या ,परहस्तगतं च धनम् |
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् ||
अर्थात् :
पुस्तक में रखी विद्या तथा दूसरे के हाथ में गया धन—ये दोनों ही ज़रूरत के समय हमारे किसी भी काम नहीं आया करते |
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् ||
अर्थात् :
पुस्तक में रखी विद्या तथा दूसरे के हाथ में गया धन—ये दोनों ही ज़रूरत के समय हमारे किसी भी काम नहीं आया करते |
श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन , दानेन पाणिर्न तु कंकणेन ,
विभाति कायः करुणापराणां , परोपकारैर्न तु चन्दनेन ||
अर्थात् :
कानों की शोभा कुण्डलों से नहीं अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ दान करने से सुशोभित होते हैं न कि कंकणों से | दयालु / सज्जन व्यक्तियों का शरीर चन्दन से नहीं बल्कि दूसरों का हित करने से शोभा पाता है |
विभाति कायः करुणापराणां , परोपकारैर्न तु चन्दनेन ||
अर्थात् :
कानों की शोभा कुण्डलों से नहीं अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ दान करने से सुशोभित होते हैं न कि कंकणों से | दयालु / सज्जन व्यक्तियों का शरीर चन्दन से नहीं बल्कि दूसरों का हित करने से शोभा पाता है |
पापान्निवारती योजते हिताय गुह्यं निगूणान प्रकटी करोति ।
आपदगतं न च जहाति सन्मित्र लक्षणम् प्रवदन्ति संत्र ।।
अर्थात्
जो आपको पाप करने से रोके और आपके हित के लिए सदा तत्पर रहे,
आपके भीतर में छुपे गुणों को बहार लाने का प्रयास करे,
आपकी कठिन परीस्थिति में आपको छोड़के जो ना जाये,
ऐसे लक्षण एक सच्चे मित्रके होते है।
आपदगतं न च जहाति सन्मित्र लक्षणम् प्रवदन्ति संत्र ।।
अर्थात्
जो आपको पाप करने से रोके और आपके हित के लिए सदा तत्पर रहे,
आपके भीतर में छुपे गुणों को बहार लाने का प्रयास करे,
आपकी कठिन परीस्थिति में आपको छोड़के जो ना जाये,
ऐसे लक्षण एक सच्चे मित्रके होते है।
भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा- मुघोतकं दलित-पाप-तमो-वितानम्।
सम्यक्-प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा- वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम् ||
अर्थात् :
झुके हुए भक्त देवो के मुकुट जड़ित मणियों की प्रथा को प्रकाशित करने वाले, पाप रुपी अंधकार के समुह को नष्ट करने वाले,
कर्मयुग के प्रारम्भ में संसार समुन्द्र में डूबते हुए प्राणियों के लिये आलम्बन भूत जिनेन्द्रदेव के चरण युगल को मन वचन कार्य से प्रणाम करके (मैं मुनि मानतुंग उनकी स्तुति करुँगा)|
अर्थात् :
झुके हुए भक्त देवो के मुकुट जड़ित मणियों की प्रथा को प्रकाशित करने वाले, पाप रुपी अंधकार के समुह को नष्ट करने वाले,
कर्मयुग के प्रारम्भ में संसार समुन्द्र में डूबते हुए प्राणियों के लिये आलम्बन भूत जिनेन्द्रदेव के चरण युगल को मन वचन कार्य से प्रणाम करके (मैं मुनि मानतुंग उनकी स्तुति करुँगा)|
उदये सविता रक्तो रक्त:श्चास्तमये तथा।
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥
अर्थात् :
उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है, सत्य है महापुरुष सुख और दुःख में समान रहते हैं॥
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥
अर्थात् :
उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है, सत्य है महापुरुष सुख और दुःख में समान रहते हैं॥
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